बिहार में युवाओं और बेरोज़गारों के साथ बार-बार वादाख़िलाफ़ी की गई है। भाजपा–जेडीयू सरकार ने TRE-4 भर्ती प्रक्रिया में 1.20 लाख पदों पर नियुक्ति का वादा किया था, लेकिन वास्तविकता में मात्र 26 हज़ार सीटें ही दी गईं। यह न केवल लाखों अभ्यर्थियों के साथ अन्याय है, बल्कि बिहार के भविष्य के साथ भी एक बड़ा धोखा है।
आज प्रदेश का युवा अपने हक़ और अधिकारों के लिए सड़क पर उतरने को मजबूर है। जिन युवाओं ने दिन-रात मेहनत कर परीक्षाओं की तैयारी की, उन्हें निराशा और ठगा हुआ महसूस हो रहा है। सरकार की यह नीति युवाओं के सपनों को तोड़ने वाली है और उनका भविष्य अंधकार में धकेल रही है।
यह सवाल अब हर युवा के दिल में है—क्या यही है सरकार का तथाकथित "शिक्षक दिवस का तोहफ़ा"? वादा करके पीछे हट जाना, नियुक्तियों को कम कर देना और युवाओं को बेरोज़गारी की मार झेलने के लिए छोड़ देना—यह व्यवहार जनता और लोकतंत्र दोनों के साथ विश्वासघात है।