बिहार में मतदाता पहचान और चुनावी प्रक्रिया के लिए किए गए SIR (Systematic Identification and Review) के दौरान 34,475 से अधिक जिंदा लोगों को मृत घोषित कर वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया गया है। इस घोर अन्याय ने मतदाता वर्ग में गहरी चिंता और असंतोष पैदा किया है। जिन लोगों को गलत तरीके से मृत घोषित किया गया है, उन्हें अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है, जबकि उनका मतदान करना और लोकतंत्र में भाग लेना मूल अधिकार है।
सरकारी तंत्र की लापरवाही और चुनाव आयोग की मौन प्रतिक्रिया लोकतंत्र की मूल भावना को शर्मसार कर रही है। इस कार्रवाई से यह स्पष्ट होता है कि सत्ता का फर्जीवाड़ा और प्रशासनिक उदासीनता आम जनता के अधिकारों को कमजोर कर रही है। जनता का मत ही लोकतंत्र की असली ताकत है, लेकिन इस तरह के मामलों में उनकी आवाज़ दबाई जा रही है।
साथ ही, इस मुद्दे ने पूरे राज्य में नागरिकों को जागरूक किया है कि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें और गलती सुधारने की मांग करें। लोगों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि लोकतंत्र बिकाऊ नहीं है और मताधिकार छीना नहीं जा सकता। आवश्यक है कि प्रशासन और चुनाव आयोग तुरंत हस्तक्षेप करें