पटना की सड़कों पर एक बार फिर आशा कार्यकर्ताओं का हुजूम देखने को मिला। हजारों की संख्या में एकत्रित हुईं इन स्वास्थ्य सेविकाओं ने यह साबित कर दिया कि संगठित संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता। सरकार द्वारा घोषित 3000 रुपये मानदेय वृद्धि उनकी लंबे समय से चल रही लड़ाई की पहली जीत है, लेकिन यह संघर्ष यहीं थमने वाला नहीं है।
आशा कार्यकर्ता देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं। गांव-गांव, घर-घर जाकर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य से लेकर टीकाकरण और जनजागरूकता तक की जिम्मेदारी निभाने वाली ये महिलाएं बेहद कठिन परिस्थितियों में काम करती हैं। बावजूद इसके, उन्हें आज तक न तो सम्मानजनक मानदेय मिल पाया है और न ही सरकारी कर्मचारी का दर्जा। यही वजह है कि आज पटना में इनकी आवाज़ गूंज उठी।
पटना में हुआ यह विशाल प्रदर्शन केवल आशा कार्यकर्ताओं की लड़ाई नहीं, बल्कि उस व्यापक संघर्ष का प्रतीक है जिसमें गरीब और मेहनतकश तबका अपने हक और सम्मान के लिए आवाज़ बुलंद कर रहा है। उनकी मांगें जायज़ हैं और इनकी अनदेखी न तो लोकतंत्र के हित में है और न ही समाज के स्वास्थ्य तंत्र के आशा कार्यकर्ताओं की यह लड़ाई एक उम्मीद जगाती है कि संगठित संघर्ष से बदलाव संभव है