शहादत केवल किसी एक व्यक्ति का बलिदान नहीं होता, बल्कि वह पूरी पीढ़ी के सपनों, उम्मीदों और संघर्षों का प्रतीक होता है। हमारे शहीद साथियों ने अपने जीवन की आहुति इसलिए दी थी ताकि समाज से अन्याय, शोषण और असमानता मिट सके, और एक ऐसी व्यवस्था कायम हो जिसमें हर इंसान को सम्मान और अधिकार के साथ जीने का हक़ मिले।
आज जब हम उनके बलिदान को याद करते हैं, तो यह केवल श्रद्धांजलि देने भर का अवसर नहीं है, बल्कि उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेने का समय है। शहीदों ने जिस न्यायपूर्ण समाज, बराबरी और स्वतंत्रता का सपना देखा था, उस मंज़िल तक पहुँचना ही हमारी असली जिम्मेदारी है। जब तक उनकी कल्पनाओं का समाज – न्याय, बराबरी और भाईचारे पर आधारित समाज – ज़मीन पर न उतर आए।
उनका संघर्ष हमें सिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं माननी चाहिए। चाहे दमन कितना भी बढ़े, अन्याय कितना भी ताक़तवर क्यों न हो, सच्चाई और संघर्ष की लौ कभी बुझ नहीं सकती। यही विश्वास हमें आगे बढ़ने की ताक़त देता है।हमारा आंदोलन, हमारी एकजुटता और हमारी आवाज़ ही शहीदों के सपनों को हक़ीक़त में बदल सकती है। हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे,