बिहार में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान जब विभिन्न जिलों से आई महिलाओं ने अपनी बातें साझा कीं, तो वहां उपस्थित हर व्यक्ति भावुक हो गया। महिलाओं ने बताया कि कैसे वे वर्षों से छोटे-छोटे कर्ज़ों के जाल में फंसती जा रही हैं—कभी बीमारी के इलाज के लिए, कभी बच्चों की पढ़ाई, तो कभी रोज़मर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें साहूकारों या माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज़ लेना पड़ता है।
इन कर्ज़ों पर लगने वाला ऊँचा ब्याज, लगातार बढ़ते किश्तों का दबाव, और समय पर भुगतान न करने पर मिलने वाली धमकियाँ—इन सबने उनकी ज़िंदगी को कठिन बना दिया है। कई महिलाओं ने यह भी बताया कि परिवार की आय का बड़ा हिस्सा केवल कर्ज़ चुकाने में चला जाता है, जिससे भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं हो पातीं।
इस सम्मेलन ने साफ दिखा दिया कि महिलाओं की आर्थिक स्थिति पर कर्ज़ का असर कितना गहरा और व्यापक है। उन्होंने सरकार से अपील की कि इस समस्या को गंभीरता से लिया जाए, कर्ज़दार महिलाओं को राहत दी जाए और उन्हें आजीविका के स्थायी साधन उपलब्ध कराए जाएं, ताकि वे सम्मानपूर्वक और स्वतंत्र जीवन जी सकें।