हर रविवार एक पैग़ाम: जनता से सीधा संवाद, बिना विराम" केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि लोकतंत्र के उस मूल सिद्धांत की अभिव्यक्ति है, जिसमें जनप्रतिनिधि और जनता के बीच निरंतर और खुला संवाद सबसे ज़रूरी होता है। यह पहल उन तमाम आवाज़ों को मंच देने का प्रयास है, जो अक्सर सत्ता की चकाचौंध में अनसुनी रह जाती हैं — गाँव के किसान से लेकर बेरोज़गार नौजवान तक, घरेलू महिलाओं से लेकर छोटे दुकानदारों तक।
हर रविवार एक ऐसा अवसर होगा, जब जनता के मुद्दों, उनकी समस्याओं, सुझावों और अनुभवों को प्राथमिकता दी जाएगी। यह संवाद न किसी चुनावी लाभ के लिए है, न प्रचार की रणनीति के तहत — यह एक सच्चा और सतत प्रयास है आम नागरिक से जुड़ने का, उनके मन की बात जानने और उनकी ज़िंदगी में बदलाव लाने का। इस पहल के माध्यम से उन क्षेत्रों पर रोशनी डाली जाएगी जो अक्सर हाशिए पर रह जाते हैं —
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, कृषि, सामाजिक न्याय और ज़मीनी स्तर पर हो रहे बदलाव। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि यह संवाद एकतरफा न हो, बल्कि लोगों की भागीदारी से समृद्ध हो।जब सत्ता के गलियारों में चुप्पी होती है, तब सच्चे जनप्रतिनिधि आवाज़ उठाते हैं। “हर रविवार एक पैग़ाम” उसी आवाज़ को बुलंद करने का माध्यम है