मोदी सरकार के 11 वर्षों के लंबे कार्यकाल के बाद भी देश की आम जनता को राहत नहीं मिल सकी है। जिस बदलाव के वादे के साथ 2014 में यह सरकार सत्ता में आई थी, वह अब केवल नारों, प्रचार और दिखावे तक ही सीमित रह गई है। देश का युवा आज भी रोजगार के इंतज़ार में है, फार्म भरते-भरते उसकी उम्र निकल गई, लेकिन नौकरियाँ अब भी सपना बनी हुई हैं।
महंगाई अपने चरम पर है — रसोई गैस, अनाज, दवाइयाँ, शिक्षा और ईंधन तक आम आदमी की पहुँच से बाहर हो गए हैं। किसान आज भी अपने हक़ के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहा है, लेकिन सरकार उसकी आवाज़ सुनने को तैयार नहीं। लोकतंत्र अब जनसंवाद से नहीं, बल्कि TRP और टेलीप्रॉम्प्टर से संचालित हो रहा है। "सबका साथ, सबका विकास," और "बदलाव" जैसे नारों से जनता में आशा जगी थी — वे आज 2025 में खोखले साबित हो चुके हैं।
मन की बात" में बहुत कुछ कहा गया, लेकिन जनता के "दर्द की बात" अभी भी अनसुनी है। अब वक्त आ गया है कि सरकार जश्न मनाने के बजाय जवाब दे — उन करोड़ों नागरिकों को, जिन्होंने उम्मीदों के साथ बदलाव के लिए वोट दिया था।मोदी सरकार के 11 वर्षों के लंबे शासनकाल के बाद भी देश की आम जनता की स्थिति जस की तस बनी हुई है। जिन उम्मीदों और वादों के साथ वर्ष 2014 में सरकार ने सत्ता संभाली थी — "अच्छे दिन,"