देश के वीर जवान, जो सीमाओं पर अपनी जान की बाज़ी लगाकर हमारी सुरक्षा करते हैं, उन्हें जिस ट्रेन में सफर करना पड़ता है उसकी हालत जर्जर और खस्ताहाल है। हाल ही में ऐसी ही एक ट्रेन में हुए हादसे ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए ₹8,000 करोड़ की लागत से एक आलीशान विशेष विमान खरीदा गया है, जिसमें तमाम अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं।
यह केवल संसाधनों का असमान वितरण नहीं, बल्कि देश के उन सपूतों का सीधा अपमान है जो राष्ट्र सेवा में दिन-रात लगे रहते हैं। क्या यह उचित है कि जिनके बलिदान पर देश खड़ा है, उन्हें खटारा ट्रेनें मिलें और जिनका काम प्रशासनिक सेवा है, उनके लिए करोड़ों के विमान? देशभक्ति केवल भाषणों और नारों से नहीं, बल्कि ज़मीन पर दिखने वाले फैसलों और प्राथमिकताओं से साबित होती है।
यह सवाल अब हर नागरिक को खुद से पूछना चाहिए — क्या यही है सच्ची देशभक्ति? क्या हमारे जवानों की जान इतनी सस्ती है? एक ओर जवानों की दुर्दशा, दूसरी ओर शानो-शौकत में डूबी सत्ता — यह असंतुलन अब और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। देश के संसाधनों पर पहला हक़ जनता और सैनिकों का है, सत्ता के शाही ठाठ का नहीं।