देश के अन्नदाता आज बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। बढ़ता कर्ज़, सूखते खेत और आर्थिक तंगी ने किसानों की ज़िंदगी को संकट में डाल दिया है। बावजूद इसके, सरकार की ओर से कोई ठोस सहायता या राहत नजर नहीं आती। भाजपा सरकार की उदासीनता और मूकदर्शक रवैया इस संकट को और भी गंभीर बना रहा है। यह केवल एक आर्थिक संकट नहीं, बल्कि किसानों के आत्मसम्मान और भविष्य का सवाल है — जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
इस गहराते संकट के बीच, भाजपा सरकार का रवैया न केवल उदासीन है, बल्कि चिंताजनक भी है। बार-बार किए गए वादे—जैसे किसानों की आय दोगुनी करने, सिंचाई की बेहतर व्यवस्था, और फसल बीमा की गारंटी—सिर्फ चुनावी भाषणों तक ही सीमित रह गए हैं। ज़मीन पर हालात यह हैं कि लाखों किसान आत्महत्या के कगार पर पहुंच चुके हैं या खेती छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं।
सरकार की यह तमाशबीन भूमिका किसानों के दर्द को और भी बढ़ा रही है। संकट की इस घड़ी में जब सरकार को आगे आकर राहत और समाधान देना चाहिए, वह केवल आंकड़ों और प्रचार में व्यस्त दिखती है। यह सिर्फ खेती का संकट नहीं है, बल्कि ग्रामीण भारत के भविष्य और देश की खाद्य सुरक्षा पर भी बड़ा खतरा बन चुका है।