"हक़ दो, वादा निभाओ" आंदोलन के तहत यह विरोध प्रदर्शन न केवल सरकार की घोषणाओं को याद दिला रहा है, बल्कि ग़रीबों की गरिमा और जीविका के लिए लड़ाई का प्रतीक भी बन चुका है।इस आंदोलन ने पालीगंज की सड़कों को जनसैलाब से भर दिया, जहाँ नारों की गूंज के साथ लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की। यह सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि एक चेतावनी है
अगर वादों को पूरा नहीं किया गया, तो यह आंदोलन और तेज़ और व्यापक रूप लेगा। चाहे वो युवाओं का रोज़गार से जुड़ा सवाल हो, डिग्री कॉलेज की स्थापना की मांग हो, या फिर किसानों, मज़दूरों, शिक्षकों और आम नागरिकों के सामाजिक-आर्थिक अधिकार—पालीगंज के आंदोलन में आज हर वर्ग की आवाज़ शामिल हो रही है। यह आंदोलन केवल माँगों की सूची नहीं है, बल्कि वर्षों से उपेक्षित जनता का गुस्सा, पीड़ा और उम्मीदों का समुच्चय है।