पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, जो बिहार की उच्च शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, इन दिनों प्रभारी प्राचार्य की नियुक्तियों में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर सवालों के घेरे में है। हाल ही में सामने आए मामलों में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि विश्वविद्यालय में प्राचार्य पदों की नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी न होकर राजनीतिक हस्तक्षेप, सिफारिश, और पैसे के लेन-देन से प्रभावित हो रही है।
विश्वविद्यालय के अधीनस्थ कई कॉलेजों में ऐसे शिक्षकों को प्रभारी प्राचार्य बना दिया गया है जिनकी न तो प्रशासनिक योग्यता है, न अनुभव, और कई मामलों में उनका शैक्षणिक रिकॉर्ड भी औसत से नीचे है। इसके बावजूद योग्य और वरिष्ठ शिक्षकों की उपेक्षा कर कुछ चहेते नामों को प्राथमिकता दी गई है, जिससे विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली और शिक्षण व्यवस्था दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
सूत्रों के अनुसार, इन नियुक्तियों में यूजीसी और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों की खुलकर अनदेखी की गई है। कई नाम ऐसे हैं जो नियमों के अनुसार इस पद के लिए योग्य ही नहीं थे, फिर भी उन्हें पदभार दे दिया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि नियुक्तियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता को दरकिनार कर राजनीतिक और व्यक्तिगत हित साधे जा रहे हैं।