भारत के विश्वविद्यालयों को हमेशा से लोकतांत्रिक चेतना, वैचारिक विविधता और सामाजिक न्याय की गहराई से जुड़ा हुआ माना गया है। यह वो स्थान हैं जहाँ युवाओं की सोच, सवाल उठाने की क्षमता और बदलाव की आकांक्षाएं आकार लेती हैं। लेकिन मौजूदा दौर में इन शैक्षणिक संस्थानों को एक सुनियोजित रणनीति के तहत भय, चुप्पी और आज्ञाकारिता की प्रयोगशाला में तब्दील किया जा रहा है।
इसी दमनकारी मानसिकता का एक ताज़ा उदाहरण आज सामने आया, जब दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) विश्वविद्यालय परिसर में घुसकर 20 से अधिक छात्रों को हिरासत में ले लिया। ये सभी छात्र प्रशासन द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के खिलाफ शांतिपूर्ण धरने पर बैठे थे। उनका विरोध पूरी तरह शांतिपूर्ण था—कोई नारेबाज़ी, कोई उग्रता नहीं। फिर भी, उन्हें जबरन उठाया गया, बिना किसी वैध कानूनी प्रक्रिया के हिरासत में लिया गया।
यह घटना केवल छात्रों की गिरफ्तारी नहीं है, यह लोकतांत्रिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के मौलिक अधिकार पर सीधा हमला है। यह उस मानसिकता को उजागर करती है जो विश्वविद्यालयों को केवल ‘राजनीति-मुक्त’ नहीं, बल्कि ‘विचार-मुक्त’ बनाना चाहती है—जहाँ न सवाल होंगे, न प्रतिरोध, सिर्फ चुप्पी और आदेश पालन।
मोदी सरकार और विश्वविद्यालयों के प्रशासन में बैठे उनके समर्थक इस बात से डरते हैं कि छात्र अगर सवाल पूछेंगे, तो उनकी सत्ता की नींव हिलेगी।
Dr. Sandeep Saurav