लोकतंत्र की बुनियाद सभी नागरिकों के मताधिकार पर टिकी होती है, लेकिन हाल के घटनाक्रमों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि गरीब और प्रवासी मतदाताओं को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करने की एक सुनियोजित कोशिश की जा रही है। पहचान के नाम पर दस्तावेज़ों की मांग, मतदाता सूची से नाम गायब होना, और मतदान केंद्रों तक पहुंच में बाधाएं – ये सब उन वर्गों को प्रभावित कर रही हैं जो पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं।
यह न सिर्फ मतदान के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर सीधा प्रहार भी है। प्रवासी मजदूर, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले परिवार और दिहाड़ी मज़दूर – जिन्हें देश की रीढ़ माना जाता है – अगर उनके मत को ही दबा दिया जाए, तो यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा है।
जरूरत है जागरूकता, संगठित विरोध और न्यायपूर्ण नीति की, ताकि हर नागरिक का मत सुरक्षित रहे और लोकतंत्र में सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो। गरीब और प्रवासी मतदाताओं की आवाज़ को दबाने की हर कोशिश का डटकर विरोध होना चाहिए।