शिक्षक समाज का बौद्धिक स्तंभ और नैतिक मार्गदर्शक होता है। जब शिक्षकों का अपमान होता है, तो यह केवल एक व्यक्ति या पेशे का अपमान नहीं होता, बल्कि यह पूरे समाज की चेतना, ज्ञान और मूल्यों पर आघात होता है। हाल ही की घटनाओं में जिस तरह से शिक्षकों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया गया और विश्वविद्यालयों की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था, सीनेट, की गरिमा पर हमला हुआ, वह भारतीय लोकतंत्र और शिक्षा प्रणाली की गिरती स्थिति का गंभीर संकेत है।
किसी भी समाज में शिक्षक वह व्यक्तित्व होता है जो विचारों का निर्माण करता है, सवाल पूछना सिखाता है, और आने वाली पीढ़ियों को दिशा देता है। ऐसे में शिक्षकों के साथ अभद्र व्यवहार, उन्हें बोलने से रोकना या उनके विचारों को दबाना एक खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाता है — जहाँ सत्ता या प्रबंधन किसी असहमति को बर्दाश्त नहीं करता। यह न केवल शैक्षणिक स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी हमला है।
विश्वविद्यालय की सीनेट किसी भी उच्च शिक्षा संस्थान की सबसे महत्वपूर्ण नीति-निर्माण इकाई होती है। वहाँ लिए गए निर्णय लोकतांत्रिक विमर्श, विचार-विनिमय और बहस के ज़रिए सामने आते हैं। यदि सीनेट के सदस्यों को धमकाया जाए, उनकी बातों को नजरअंदाज़ किया जाए, या उन्हें दबाया जाए, तो यह पूरी प्रणाली की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।