हाल ही में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित डोमिसाइल नीति को लेकर काफी बहस और चर्चा हुई, लेकिन अंततः यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया। यह निर्णय जहाँ एक ओर युवाओं में निराशा का कारण बना, वहीं दूसरी ओर इस मुद्दे पर उनके संघर्ष, एकजुटता और अधिकारों की आवाज़ बुलंद करने की मिसाल भी बन गया राज्य के विभिन्न हिस्सों, खासकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों से आए शिक्षित युवाओं को उम्मीद थी
यह नीति उनके लिए नौकरियों और शिक्षा में एक स्थायी अवसर का रास्ता खोलेगी, लेकिन प्रस्ताव के खारिज होने से वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। डोमिसाइल नीति का मकसद राज्य के स्थानीय युवाओं को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्राथमिकता देना था, जिससे वे बाहरी प्रतिस्पर्धा के बिना खुद को स्थापित कर सकें।
हालाँकि सरकार द्वारा यह कहा गया कि इस नीति में कई तकनीकी व कानूनी जटिलताएँ हैं, जिनके कारण इसे पारित नहीं किया जा सका, लेकिन युवाओं और छात्र संगठनों ने इसे न्याय और अवसर से वंचित किए जाने का मामला बताया है। वे लगातार धरना, प्रदर्शन, जनसम्पर्क अभियान और सोशल मीडिया के ज़रिए अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। कई युवा नेताओं और सामाजिक संगठनों ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया है।