बिहार के अलग-अलग जिलों में हजारों की संख्या में बीड़ी मज़दूर काम कर रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। ये मज़दूर दिन-रात मेहनत कर बीड़ी निर्माण जैसे कठिन और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक काम में लगे रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें उनका वाजिब हक़ और सम्मानजनक जीवन नहीं मिल पा रहा है। न तो इन्हें न्यूनतम मज़दूरी मिलती है, और न ही स्वास्थ्य, बीमा या सामाजिक सुरक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।
बीड़ी मज़दूरों का शोषण वर्षों से चला आ रहा है। ठेकेदार और कारखाना मालिक कम पैसे में अधिक उत्पादन करवा लेते हैं, जबकि मज़दूरों को उनकी मेहनत का सही मूल्य नहीं दिया जाता। महिलाओं को घर में बैठकर बीड़ियाँ बनाने के लिए बाध्य किया जाता है, जिससे वे किसी अन्य काम या स्वरोज़गार के अवसर से भी वंचित रह जाती हैं।
कई बार सरकारों ने वादा किया कि बीड़ी श्रमिकों के लिए कल्याण योजनाएं लाई जाएंगी – जैसे कि मुफ्त स्वास्थ्य जांच, बच्चों की शिक्षा, और श्रमिक कार्ड के ज़रिए आर्थिक सहायता – लेकिन ये वादे अक्सर काग़ज़ों तक ही सीमित रह जाते हैं। हकीकत यह है कि अधिकतर मज़दूरों के पास न तो श्रमिक पहचान है, न ही वे किसी पंजीकृत श्रमिक सूची में शामिल हैं। जब तक बिहार के बीड़ी मज़दूरों को उनका हक़ नहीं मिलेगा, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा