देश का किसान आज गहरे संकट से गुजर रहा है। खेत-खलिहान कर्ज़ में डूबे हुए हैं, फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल रहा, सिंचाई और बीज जैसी बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। ऊपर से मौसम की मार और बढ़ती महंगाई ने किसानों की कमर तोड़ दी है। ऐसे समय में जब सरकार को राहत और सहायता पहुंचानी चाहिए, भाजपा सरकार मौन साधे बैठी है। यह चुप्पी किसानों की पीड़ा और उनकी मेहनत के प्रति सरकार की संवेदनहीनता को दर्शाती है। अब सवाल उठना लाज़मी है — कब तक अनदेखी झेलेगा किसान?
भारत की कृषि व्यवस्था आज गहरे संकट के दौर से गुजर रही है। किसानों की रीढ़ कही जाने वाली खेत-खलिहान आज कर्ज़ के बोझ तले दब चुके हैं। फसलों का लागत मूल्य लगातार बढ़ रहा है, लेकिन उसकी तुलना में उपज का मूल्य किसानों को नहीं मिल रहा। महंगी खाद, बीज, डीज़ल, बिजली और सिंचाई की दिक्कतों ने हालात और भी बदतर बना दिए हैं।
इन सबके बावजूद भाजपा सरकार ने किसानों की समस्याओं से मुँह मोड़ लिया है। न तो कोई प्रभावी राहत पैकेज दिया गया, न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी सुनिश्चित की गई। न किसानों के कर्ज़ माफ किए गए, न ही मंडियों की स्थिति सुधारी गई।ऐसे में सवाल यह है कि देश के अन्नदाता के साथ यह बेरुखी कब तक चलेगी? किसानों की मेहनत का सम्मान और उनके जीवन का संरक्षण किसी भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।