जयप्रकाश नारायण द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन केवल सत्ता परिवर्तन का प्रयास नहीं था, बल्कि यह व्यवस्था परिवर्तन की पुकार थी। उस समय हजारों युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विचारवान नागरिकों ने तानाशाही के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनमें से कई ने अपनी आज़ादी, शिक्षा और करियर दांव पर लगाकर लोकतंत्र की रक्षा की। अनेक सेनानी जेलों में डाले गए, और हजारों को भूमिगत होकर आंदोलन को जिंदा रखना पड़ा। यही वे लोग थे जो बिना किसी लालच, पद या पुरस्कार के राष्ट्र की आत्मा की रक्षा कर रहे थे।
दुल्हिनबाज़ार की ऐतिहासिक धरती पर आज एक अद्वितीय और भावुक क्षण साक्षात हुआ, जब जेपी आंदोलन के दौरान भूमिगत रूप से संघर्ष करने वाले सेनानी एकत्रित हुए। यह समागम न केवल स्मृतियों का मिलन था, बल्कि उन महान आत्माओं का सम्मान भी, जिन्होंने आपातकाल के अंधेरे दौर में लोकतंत्र की लौ जलाए रखी।
दुल्हिनबाज़ार में आयोजित इस समागम में उन भूमिगत सेनानियों को ससम्मान आमंत्रित किया गया, जिन्होंने इतिहास के उस कालखंड में अदम्य साहस का परिचय दिया था। उनके अनुभवों, संस्मरणों और विचारों ने उपस्थित जनसमूह को भावविभोर कर दिया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि यह समागम न केवल इतिहास को याद करने का अवसर है, बल्कि वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को लोकतंत्र, अधिकारों और जनआंदोलनों के महत्व का बोध कराने का भी माध्यम है।