दुल्हिनबाज़ार में एक ऐतिहासिक क्षण उस समय सजीव हो उठा, जब जेपी आंदोलन के भूमिगत सेनानी वर्षों बाद एक मंच पर एकत्र हुए। यह समागम केवल एक बैठक नहीं, बल्कि संघर्ष, बलिदान और लोकतंत्र की पुनः स्मृति का प्रतीक बना। बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानियों का आशीर्वाद और उनके अनुभवों की गूंज ने युवाओं को प्रेरणा दी और आंदोलन की जीवंतता को पुनर्जीवित किया। इस आयोजन ने यह दर्शाया कि सच्चा परिवर्तन तब होता है जब पीढ़ियाँ एक-दूसरे से जुड़ती हैं और इतिहास से सीखकर भविष्य की दिशा तय करती हैं। इन भूमिगत सेनानियों ने 1974 के उस आंदोलन में हिस्सा लिया था, जिसे लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने नेतृत्व प्रदान किया था। वे वह योद्धा थे, जो आपातकाल की कठोरता में भी अडिग रहे, जिन्होंने जेलों की सलाखों के पीछे, जंगलों की छांव में, और जनता के बीच रहकर आंदोलन को ज़िंदा रखा। उनका समागम केवल एक पुनर्मिलन नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत दस्तावेज़ बन गया। इस अवसर पर मौजूद बड़े-बुज़ुर्गों ने अपने अनुभवों और संघर्षों को साझा किया, जो सुनने वालों की आत्मा को छू गए। उनका आशीर्वाद मानो उस आंदोलन की आत्मा को फिर से जीवंत कर गया। युवाओं के बीच यह आयोजन एक प्रेरणा बन गया – यह संदेश देते हुए कि परिवर्तन केवल नारों से नहीं, बल्कि समर्पण और साहस से आता है। Dr Sandeep Saurav