अररिया में वक़्फ़ संशोधन क़ानून के विरोध में एक ऐतिहासिक जनसभा का आयोजन किया गया, जिसमें एक लाख से ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया। यह सभा केवल एक समुदाय की आवाज़ नहीं थी, बल्कि संविधान, लोकतंत्र और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एकजुट जनता की आवाज़ थी। भाकपा (माले) सहित कई संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस जनांदोलन में भागीदारी की।
वक्ताओं ने वक़्फ़ संशोधन क़ानून को जनविरोधी, अल्पसंख्यक-विरोधी और असंवैधानिक करार देते हुए इसे अविलंब वापस लेने की मांग की। इस सभा ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की विविधता और संविधान की मूल भावना से खिलवाड़ किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस कानून की संवैधानिकता पर उठाए गए सवालों का हवाला देते हुए, जनसभा ने केंद्र सरकार से इस कानून को तुरंत वापस लेने की मांग की
इस जनसभा का नेतृत्व कई सामाजिक संगठनों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों ने मिलकर किया, जिसमें भाकपा (माले) की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान वक्ताओं ने वक़्फ़ संशोधन क़ानून की गहराई से आलोचना करते हुए इसे पूरी तरह अल्पसंख्यक विरोधी, जनविरोधी और असंवैधानिक बताया। उन्होंने कहा कि यह क़ानून न केवल मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक अधिकारों पर हमला है, बल्कि भारत जैसे विविधता-भरे लोकतांत्रिक देश की बुनियाद को भी कमज़ोर करता है।