खपुरी गाँव की मिट्टी में रची-बसी लोकसंस्कृति और परंपराओं की जीवंत अभिव्यक्ति के रूप में इस वर्ष चइता समारोह का शुभारंभ बड़े ही उत्साह, श्रद्धा और लोकआस्था के साथ हुआ। यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है, बल्कि लोकगीतों, परंपराओं और गांव की सामूहिक चेतना को पुनः जाग्रत करने का एक सशक्त माध्यम भी है।
चैत्र मास की रात्रियों में जब पुरवा हवा बहती है और चांदनी रात खेतों और आंगनों को रोशन करती है, तब खपुरी गाँव का यह चइता समारोह अपने पूरे रंग में होता है। इस वर्ष समारोह का उद्घाटन गांव के वरिष्ठ जनों और स्थानीय सांस्कृतिक मंडली के साथ किया गया। मंगलाचरण और लोक वंदनाओं के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जिसके बाद एक से बढ़कर एक चइता गायकों ने अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
चइता गीत, जो आमतौर पर प्रेम, विरह, भक्ति और सामाजिक जीवन के विविध रंगों को स्वर देते हैं, इस आयोजन में अपनी पूरी गरिमा और परंपरा के साथ गूंजे। युवाओं की भागीदारी और महिलाओं का उत्साह यह दर्शाता है कि यह परंपरा केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही, बल्कि नई पीढ़ी भी इसे आत्मसात कर रही है।