बिहार के भागलपुर ज़िले के पीरपैंती क्षेत्र में अडानी ग्रुप को औद्योगिक परियोजना के लिए बड़ी मात्रा में ज़मीन बेहद कम दामों पर आवंटित की गई है। यह ज़मीन गंगा किनारे की उपजाऊ और हरित भूमि मानी जाती है, जहाँ वर्षों से हज़ारों पेड़-पौधे, वनस्पति और जैव विविधता का प्राकृतिक संतुलन बना हुआ था। सरकार द्वारा ज़मीन हस्तांतरण की प्रक्रिया को लेकर पारदर्शिता और पर्यावरणीय चिंताओं को लेकर स्थानीय स्तर पर विरोध के स्वर तेज़ हो रहे हैं।
परियोजना के लिए चिह्नित क्षेत्र में लाखों पेड़ हैं, जिनका काटा जाना लगभग तय माना जा रहा है। यह न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर असर डालेगा, बल्कि किसानों, आदिवासी समुदायों और वहाँ की जीविका पर भी गहरा प्रभाव डालेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की परियोजनाएं बिना पर्यावरण प्रभाव आंकलन (EIA) के आगे बढ़ाई जा रही हैं, जो भविष्य में गंभीर जलवायु और सामाजिक संकट को जन्म दे सकती हैं।
स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इस ज़मीन आवंटन को ‘कौड़ियों के भाव में कॉरपोरेट सौदा’ बता रहे हैं, जिसमें जनहित की अनदेखी की गई है। वे मांग कर रहे हैं कि परियोजना को तुरंत रोका जाए और इस मुद्दे पर सार्वजनिक सुनवाई और स्वतंत्र जांच की जाए। यह मामला बिहार में विकास बनाम पर्यावरण के संतुलन की एक बड़ी परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है।