देश की जनता अब केवल भाषणों, वादों और मंचीय नाटकों से संतुष्ट नहीं है। उन्हें चाहिए ठोस विकास, बेहतर शिक्षा, रोज़गार के अवसर, महँगाई पर नियंत्रण और जनकल्याणकारी नीतियों का सही क्रियान्वयन। लेकिन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की कार्यशैली में बार-बार दिखावे, इवेंटबाज़ी और प्रचार को प्राथमिकता दी जाती रही है, जबकि ज़मीनी स्तर पर बदलाव नज़र नहीं आते।
यह कटाक्ष केवल विरोध के लिए नहीं, बल्कि उस जमीनी हकीकत को उजागर करने के लिए है, जिसे आम नागरिक प्रतिदिन महसूस करता है। बेरोज़गारी चरम पर है, किसानों की समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं, और शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे मूलभूत क्षेत्रों में कोई ठोस सुधार नहीं दिखता।
आज देश की जनता उस मोड़ पर खड़ी है जहाँ उसे शब्दों से ज़्यादा कर्म चाहिए, वादों से ज़्यादा परिणाम चाहिए, और ड्रामेबाज़ी से ज़्यादा ठोस विकास चाहिए। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की कार्यशैली इन अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर रही है। प्रचार, इवेंट्स और भावनात्मक भाषणों में माहिर यह पार्टी जब सत्ता में आती है, तो आमजन की ज़रूरतें और मुद्दे कहीं पीछे छूट जाते हैं।