बिहार में शिक्षा प्रणाली की स्थिति पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं, जब यह सामने आया कि साल 2008 से लेकर अब तक राज्य में लाइब्रेरियन (पुस्तकालयाध्यक्ष) की नियुक्ति नहीं हुई है। यह न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था की उपेक्षा को दर्शाता है, बल्कि हजारों प्रशिक्षित और योग्य बेरोजगार युवाओं के साथ किए जा रहे अन्याय की भी कहानी है। पुस्तकालय किसी भी शैक्षणिक संस्था का महत्वपूर्ण अंग होता है।
दूसरी ओर, हजारों अभ्यर्थी जिन्होंने लाइब्रेरी साइंस में डिग्री और डिप्लोमा प्राप्त किए हैं, पिछले 15 वर्षों से बहाली की आस में भटक रहे हैं। कई बार इन युवाओं ने सरकार से मांग की, धरना-प्रदर्शन किए, ज्ञापन सौंपे, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक न कोई विज्ञापन जारी हुआ, न कोई स्पष्ट नीति बनाई गई।