जमुई जेल में 22 अगस्त को विचाराधीन कैदी डब्लू चौधरी की संदिग्ध मौत ने एक बार फिर बिहार की जेल व्यवस्था और शासन तंत्र की भयावह सच्चाई को उजागर कर दिया है। परिजनों का आरोप है कि जेल प्रशासन ने उनसे 10 हजार रुपये की रिश्वत की मांग की थी। लेकिन गरीब परिवार इतने पैसे नहीं जुटा सका — और इसके बदले में उन्हें अपने बेटे की लाश मिली। यह घटना न सिर्फ मानवता को झकझोरने वाली है।
परिवार का कहना है कि जेल के भीतर उनके बेटे को जानबूझकर मारा गया क्योंकि वे रिश्वत नहीं दे सके। यह आरोप केवल एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं, बल्कि उस सिस्टम की असलियत को उजागर करता है जहाँ गरीब की कोई सुनवाई नहीं होती। जब जेल जैसे सुरक्षित माने जाने वाले स्थान पर भी आम नागरिक की जान की गारंटी नहीं दी जा सकती
यह मामला सिर्फ एक मौत का नहीं, बल्कि पूरी शासन व्यवस्था पर सवालिया निशान है। क्या आज भी हमारी न्याय प्रणाली गरीब और अमीर के लिए अलग है? क्या जेलें सुधार की जगह, भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के केंद्र बन चुकी हैं? यह घटना एक चेतावनी है कि अगर शासन ने समय रहते आत्ममंथन नहीं किया और व्यवस्था में पारदर्शिता व जवाबदेही नहीं लाई, तो जनता का भरोसा पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।