बिहार विधानसभा में SIR घोटाले को लेकर लगातार चौथे दिन भी महागठबंधन का जबरदस्त हल्ला बोल जारी रहा। विपक्ष ने यह साफ़ कर दिया है कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक या वित्तीय घोटाला नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर सीधा हमला है। यह घोटाला उन वंचित तबकों — दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों — के मताधिकार को कमजोर करने की गहरी साजिश है, जो हमारे संविधान की मूल आत्मा को चुनौती देती है।
भाजपा-जदयू सरकार की चुप्पी अब एक सामान्य राजनीतिक व्यवहार नहीं, बल्कि एक सहमति की चुप्पी बनती जा रही है। सदन में जब सरकार जवाब देने की स्थिति में नहीं दिखती, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है। महागठबंधन ने स्पष्ट कहा है कि वे चुप नहीं बैठेंगे।
बिहार की राजनीति में इन दिनों एक बड़ा सवाल गूंज रहा है — क्या यह केवल एक प्रशासनिक घोटाला है, या फिर लोकतंत्र की नींव को कमजोर करने की सुनियोजित साजिश? SIR घोटाला, जो अब राज्य की विधानसभा से लेकर सड़क तक चर्चा का केंद्र बन चुका है, केवल भ्रष्टाचार की एक कड़ी नहीं, बल्कि दलितों, पिछड़ों, गरीबों और अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला है।