हनुमान जन्मोत्सव के पावन अवसर पर आस्था, परंपरा और समाजिक एकता का अनुपम संगम देखने को मिला। साथी पार्षद श्री पृथ्वी गुप्ता जी के द्वारा आयोजित भंडारे में उपस्थित होकर श्रद्धालुओं संग प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
यह भंडारा केवल धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि एक ऐसा अवसर था जहाँ भक्ति के साथ-साथ सहभागिता की भावना भी साकार हुई। अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आए लोग एक ही पंक्ति में बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हुए यह दर्शा रहे थे कि हमारी परंपराएँ हमें न केवल ईश्वर से जोड़ती हैं, बल्कि एक-दूसरे से भी जोड़ती हैं।
ऐसे आयोजनों में सहभागिता समाज के भीतर सौहार्द, एकता और सेवा की भावना को मजबूत करती है। यह केवल एक दिन की बात नहीं, बल्कि उस संस्कृति का उत्सव है जिसमें प्रसाद में प्रेम, परंपरा में पहचान, और सहभागिता में समाज की शक्ति बसती है।कल इसी शुभ अवसर पर साथी पार्षद श्री पृथ्वी गुप्ता जी द्वारा आयोजित भंडारे में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मित्रों और क्षेत्रवासियों के संग बैठकर प्रसाद ग्रहण किया — यह क्षण सिर्फ़ भोजन का नहीं, बल्कि आपसी स्नेह, समर्पण और एकता का अनुभव था।
भंडारा हमारी भारतीय परंपरा का वह भाग है, जो बिना भेदभाव के सबको एक साथ जोड़ता है। वहाँ ना कोई ऊँच-नीच होती है, ना कोई वर्ग-विभाजन। सभी लोग एक पंक्ति में बैठकर, एक ही थाली से प्रसाद पाते हैं — यह दृश्य दर्शाता है कि हमारी संस्कृति में सेवा ही सच्ची भक्ति है।
ऐसे आयोजनों में भाग लेना सिर्फ़ एक सामाजिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक आत्मिक संतोष भी है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है, हमारे भीतर के उस मानवीय पक्ष को उजागर करता है जो दूसरों की सेवा और सुख में अपना सुख ढूंढता है।