बिहार विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि उसने ईडी (प्रवर्तन निदेशालय), सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) और इलेक्टोरल बॉन्ड के दुरुपयोग के माध्यम से 30 कंपनियों से 335 करोड़ रुपये की जबरन वसूली की है।
आरोपों के मुताबिक, पहले इन कंपनियों पर ईडी और सीबीआई के ज़रिए जांच का दबाव बनाया गया। जब कंपनियाँ डर गईं, तो उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से भाजपा को 'चंदा' देने के लिए मजबूर किया गया। जैसे ही पैसा दिया गया, जांच अचानक ठंडी पड़ गई या बंद कर दी गई।
यह सिलसिला राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। इस पूरे मामले ने देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता और चुनावी फंडिंग की प्रक्रिया को कठघरे में ला खड़ा किया है।
विपक्ष ने इस मुद्दे पर संसद और विधानसभा दोनों में सरकार से जवाबदेही की मांग की है, और इलेक्टोरल बॉन्ड सिस्टम की स्वतंत्र जांच की मांग जोर पकड़ रही है। जनता के बीच भी इस खुलासे को लेकर गंभीर असंतोष और चिंता देखी जा रही है।
ईडी, सीबीआई और इलेक्टोरल बॉन्ड के कथित दुरुपयोग को लेकर बिहार विधानसभा के बजट सत्र में भाजपा पर बड़ा आरोप लगाया गया है।