"न्याय की नई सुबह: बदलेगा बिहार" केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक जनचेतना का उद्घोष है। यह उस परिवर्तनकारी यात्रा की culmination है जो 30 जिलों और 4000 किलोमीटर की पदयात्रा के माध्यम से लोगों के दुःख-दर्द, संघर्ष और आकांक्षाओं को आवाज़ देती रही। यह सम्मेलन उन तमाम आवाज़ों का संगम है जो वर्षों से सामाजिक अन्याय, सामंती उत्पीड़न और मूलभूत अधिकारों की उपेक्षा के खिलाफ संघर्षरत रही हैं।
इस न्याय यात्रा ने गाँव-गाँव, गली-गली में जाकर लोगों को न सिर्फ़ सुना, बल्कि उन्हें यह विश्वास भी दिलाया कि बदलाव संभव है। अब यह आंदोलन एक नई दिशा ले चुका है — वह दिशा जो बिहार को न्यायपूर्ण, समतामूलक और जनकेंद्रित समाज में बदलने की ओर अग्रसर है। "न्याय की नई सुबह: बदलेगा बिहार" केवल एक नारा नहीं, बल्कि यह बिहार की ज़मीन से उपजे एक जनआंदोलन की गूंज है। यह उस सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक बदलाव की पुकार है जिसे लम्बे समय से हाशिये पर खड़े लोगों ने अपने संघर्षों, आंसुओं और उम्मीदों के साथ सींचा है।
यह उद्घोषना 30 जिलों और 4000 किलोमीटर की पदयात्रा के culmination का प्रतीक है — एक ऐसी ऐतिहासिक यात्रा जिसमें जन-जन से संवाद हुआ, गांव-गांव की मिट्टी से सच्चाई निकाली गई, और जनता के बीच जाकर उनके दुःख, पीड़ा, आकांक्षाएं और आक्रोश को समझा गया। यह यात्रा किसी एक व्यक्ति या संगठन की नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की थी जो दशकों से सामाजिक अन्याय, जातीय भेदभाव, भूमि हक़, श्रमिक अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे मुद्दों पर संघर्षरत हैं।