आज दुल्हिनबाज़ार धर्मशाला में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने का अवसर मिला, जहाँ जेपी आंदोलन के वे जुझारू सिपाही एकत्रित हुए, जिन्होंने आपातकाल के दौरान भूमिगत रहकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। पालीगंज और आसपास के क्षेत्रों से आए इन आंदोलनकारियों का आत्मीय स्वागत, संघर्ष की उस अदम्य भावना की याद दिलाता है, जिसने भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।
बिहार सरकार द्वारा जेपी सेनानियों को पेंशन प्रदान किया जाना एक सराहनीय कदम है, लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि वे साथी, जिन्होंने सालों तक फ़रारी और भूमिगत जीवन बिताया, आज भी इस हक़ से वंचित हैं। उनका संघर्ष किसी से कम नहीं था — उनका बलिदान, त्याग और साहस लोकतंत्र की रक्षा की नींव रहा है।
पिछले चार वर्षों से, विधानसभा के भीतर और बाहर, हम निरंतर इन भूमिगत सेनानियों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं। हमने सड़क पर उतर कर संघर्ष किया है, विधायिका में प्रश्न उठाए हैं, और सरकार को इन सेनानियों का न्याय दिलाने की दिशा में कदम उठाने के लिए मजबूर किया है।जेपी आंदोलन कोई साधारण राजनीतिक घटना नहीं थी — यह स्वतंत्रता, न्याय और नागरिक अधिकारों की पुनर्स्थापना का ऐतिहासिक आंदोलन था। इसमें भाग लेने वाला हर व्यक्ति सम्मान और अधिकार का पूर्ण हक़दार है।
हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक इन गुमनाम नायकों को उनका वास्तविक स्थान और अधिकार नहीं मिल जाता।जेपी आंदोलन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है। यह केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह उन मूल्यों की पुनर्स्थापना की लड़ाई थी जो किसी भी लोकतांत्रिक समाज की नींव होते हैं