ईद का पर्व सिर्फ एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि आपसी प्रेम, भाईचारे और एकता का प्रतीक होता है। जब मैंने ईद के खास मौके पर पालीगंज और दुल्हिनबाज़ार के गांवों का दौरा किया, तो यह अनुभव बेहद भावुक, आनंददायक और जीवन को छू जाने वाला रहा। इन क्षेत्रों के गाँवों में त्योहार की तैयारियाँ कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। घरों की सफाई, बाजारों की रौनक, मीठे पकवानों की खुशबू, और लोगों के चेहरों पर झलकती मुस्कान – सब कुछ ईद के आने की आहट देता है।
ईद की सुबह जब मस्जिदों से तकबीर की आवाजें गूंजती हैं, तब गाँव की फिजा में एक अजीब सी पवित्रता और ऊर्जा भर जाती है। लोग नये कपड़े पहनकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और 'ईद मुबारक' कहते हुए एकता और प्रेम का संदेश फैलाते हैं। विशेष रूप से यह देखना बहुत सुखद होता है कि न केवल मुस्लिम समुदाय, बल्कि हिन्दू भाई भी इस खुशी में बराबर के भागीदार बनते हैं।
पालीगंज के अमहारा, बिहटा, और बिनौलिया जैसे गाँवों से लेकर दुल्हिनबाज़ार के धरहरा, सैदाबाद और चकबन्दा तक, हर जगह प्रेम, सौहार्द और भाईचारे की मिसाल देखने को मिलती है। बच्चे पटाखों और रंग-बिरंगे गुब्बारों के साथ खेलते हैं, जबकि बुज़ुर्ग मस्जिदों में नमाज़ अदा कर एक-दूसरे के लिए दुआ करते हैं। गाँव की गलियाँ सजाई जाती हैं, जगह-जगह मीठे और नमकीन व्यंजनों के स्टॉल लगते हैं, और रात में कुछ जगहों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं,