पटना विश्वविद्यालय, जो देश के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है, आज भी केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। 1917 में स्थापित यह संस्थान शैक्षणिक गुणवत्ता, ऐतिहासिक विरासत और बौद्धिक परंपरा के लिहाज़ से केंद्रीय दर्जे का पूरी तरह हकदार है। ताकि इसकी बुनियादी संरचना, शोध कार्य, शैक्षणिक संसाधन और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार हो सके।
2017 में स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के दौरान मंच से यह बयान दिया था कि बिहार को "केंद्रीय नहीं, वैश्विक सोच" की ज़रूरत है। यह वक्तव्य तब से ही विवाद और असंतोष का विषय बना हुआ है, क्योंकि कई अन्य राज्य विश्वविद्यालयों को केंद्र सरकार ने केंद्रीय दर्जा प्रदान किया है, फिर पटना विश्वविद्यालय को क्यों नहीं?
बिहार के युवाओं का यह सवाल आज और भी प्रासंगिक हो गया है, जब प्रधानमंत्री एक बार फिर पटना की धरती पर आने वाले हैं। शिक्षा के क्षेत्र में समानता और अवसरों की बात करने वाली सरकार से यह पूछा जाना ज़रूरी है — "पटना विश्वविद्यालय को उसका हक़ आखिर कब मिलेगा?"