बिहार में नवनियुक्त प्रधानाध्यापकों के साथ जो व्यवहार किया गया है, वह पूरी शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवालिया निशान है। जिला आवंटन में न महिला आरक्षण का सम्मान किया गया, न सामाजिक न्याय की मर्यादा रखी गई और न ही दिव्यांगजनों के अधिकारों का ख्याल। शिक्षकों को उनकी योग्यता और स्थिति की परवाह किए बिना सैकड़ों किलोमीटर दूर पोस्टिंग दे दी गई — जैसे वे शिक्षक नहीं, कोई सज़ायाफ्ता हों।
सरकार ने अंतर जिला स्थानांतरण की मांग को भी लंबे समय से नज़रअंदाज़ किया है। अब यह चुप्पी नहीं चलेगी। शिक्षकों की पीड़ा को हर मंच पर उठाया जाएगा — विधानसभा से लेकर सड़क तक। यह सिर्फ़ एक ट्रांसफर या पोस्टिंग की बात नहीं, यह शिक्षकों की गरिमा, सम्मान और अधिकार की लड़ाई है।